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28.10.19

'' संध्या '' - ( 1 )

( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत  संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है - )














'' संध्या '' - ( 1 )

बैठ गयी है 
ऊपर चढ़ कर धूप
       नीम पर ,
       लेकिन 
       साड़ी का पल्लू 
       लटका मुंडेर पर |

दिन भर 
चल कर थका 
और मांदा ये सूरज , 
फिसला चला जा रहा 
घाटी की ढलान से |
       खेत चुग रहे पाखी 
       अब उड़ चले गगन में ,
       जब कि चलायी गोफन 
       संध्या ने मचान से |
बोझिल कदमों लौट रही है 
हवा भीलनी ,
अपने आँचल में 
मादक महुआ समेट कर |
घनी झाड़ियों 
अलसाया - ऊँघता पड़ा था 
दिन भर रीछ - सरीखा तम ,
अब बढ़ा आ रहा |
       निकल - निकल कर 
       अन्दर से आ रहीं तरैयाँ ,
       देख रहीं 
       नंगा जंगल 
       दूधों नहा रहा |
शहर बदर थी 
जो वीरानी औ ' सूनापन ,
बस्ती में लाता 
सन्नाटा उन्हें घेर कर | 

              - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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